भगवान विष्णु दशावतार वराह अवतार, नरसिंह अवतार। bhagvan vishnu dashavatar varah avtar or narsingh avtar।

भगवान विष्णु दशावतार वराह अवतार और नरसिंह अवतार(bhagvan vishnu dashavatar varah avtar or narsingh avtar)

वराह अवतार

भगवान विष्णु ने वराह अवतार तब लिया था जब हिरण्याक्ष
 हिरण्यकश्यप नामक दो असुर तीनों लोगों में आतंक मचा रहे थे,  देवता उनके शत्रु थे देवताओं को यज्ञ हवन पूजन से बल शक्ति मिलती है इस कारण उन्होंने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया तीनों लोकों में हाहाकार मच गया सभी देवता गण हताश हो गए तब सभी देवता भगवान श्री हरि विष्णु के पास गए और सारी बातें बताइए और कहा कि प्रभु आप इसका कोई निवारण करिए तब भगवान विष्णु परम पिता ब्रह्मा जी की नासिका(नाक) से वराह अवतार में निकले।
भगवान वराह ने पृथ्वी को समुद्र मैं ढूंढा और अपने मुंह पर रखकर बाहर निकाला। फिर भगवान वराह और हिरण्याक्ष के मध्य युद्ध हुआ भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का बध कर दिया सभी देवता गण भगवान  की स्तुति करने लगे

नरसिंह अवतार


हिरण्याक्ष की मृत्यु के बाद हिरण्यकश्यप प्रतिशोध की अग्नि में जल रहा था, उसने सारे असुर को आदेश दिया कि जाओ पृथ्वी लोक पर जो भी देवताओं भगवान की पूजन, हवन, यज्ञ कर रहे हो उन्हें प्रताड़ना दो उन्हें मार डालो हिरण्यकश्यप अपने गुरु शुक्राचार्य के पास गए और कहा कि आप मुझे आदेश दीजिए मैं स्वर्ग लोक पर आक्रमण करूंगा तब गुरु शुक्राचार्य ने कहा कि अभी तुम अपनी शक्तियों को और बढ़ा लो और तपस्या करो तपस्या से तुम ऐसी शक्तियां प्राप्त करो कि तीनों लोकों में तुम्हारा सामना कोई ना कर सके तब हिरण्यकश्यप परम पिता ब्रह्मा जी की तपस्या करने लगे हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की जिससे पृथ्वी लोक और स्वर्ग लोक कांपने लगे देवता गण उस तपस्या की अग्नि से प्रभावित होने लगे तब ब्रह्मा जी  हिरण्यकश्यप को वरदान देने प्रकट हुए और बोले हिरण्यकश्यप मैंं तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूं मांगो क्या वर चाहिए तब हिरण्यकश्यप बोला कि अगर आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हो तो मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मुझे आप के बनाए हुए कोई भी प्राणी जीव पशु पक्षी मनुष्य भगवान देवता असुर नहीं मार सकते और ना ही कोई अस्त्र शास्त्र मुझे मार सके और ना ही मुझे कोई आगे से मार सके ना कोई पीछे से मार सके ना कोई ऊपर मार सके ना नीचे मार सके ना दिन में ना रात में भगवान ब्रह्मा जी ने थोड़ी देर तक सोचा और फिर कहां की आज तक इस संसार में ऐसा वरदान किसी ने नहीं मांगा ठीक है लेकिन तुमने ऐसे तपस्या की तो मैं तुम्हें यह वरदान देता हूं तथास्तु ब्रह्माजी वहां से अंतर्ध्यान हो गए।

हिरण्यकश्यप को यह वरदान मिलने से वह पहले से भी और अत्याचार करने लगा और जो भी भगवान की पूजा करते हैं, उसे मृत्युदंड दे देता हे और सभी से अपनी पूजन करवाता है और अपने आप को भगवान कहलवता है तीनों लोकों में सभी से वह  पूजा करवाता है कुछ समय पश्चात उसके यहां पुत्र हुआ प्रहलाद।

प्रहलाद 5 वर्ष का हुआ तब से ही भगवान विष्णु की आराधना करने लगा यह बात का जब हिरण्यकश्यप को पता चला तो उसने प्रहलाद को कहा कि मैं हूं तुम्हारा भगवान मेरी पूजा करो प्रह्लाद ने मानने से इनकार कर दिया इस सृष्टि के भगवान श्री हरि विष्णु जी है तो उसने पहलाद को पर्वत से नीचे फिकवा दिया लेकिन भगवान श्री हरि ने प्रहलाद को बचा लिया जब इस बात का पता हिरण्यकश्यप को लगा तो उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया।

होलिका

होली का प्रहलाद को लेकर जलती अग्नि पर बैठ गई प्रहलाद भगवान श्री हरि का स्मरण करने लगा प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ लेकिन होलिका उस अग्नि में जलने लगी तब वह ब्रह्मा जी को कहने लगी कि आपका वर मिथ्या था आप ने छल किया तब ब्रह्माजी बोले होलिका तुमने अपने वर  का दुरुपयोग किया उसी के परिणाम से तुम मृत्यु को प्राप्त होगी होली का उस अग्नि में जल गई, लेकिन प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ यह देख कर हिरण्यकश्यप और क्रोधित हुआ,
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बुलाया और कहां बता तुझे कौन बचा रहा है  प्रहलाद बोले भगवान श्री हरि वह सब की रक्षा करते हैं हर जगह है हर वस्तु में और हर समय हर क्षण रहते हैं वे ही मेरी रक्षा कर रहे हैं तब हिरण्यकश्यप क्रोधित हुए और बोला की क्या इस खंभे में भी है तब वह बोला हां इस खंभे में भी है भगवान श्री हरि, तो उसने उस खंभे को गदा से तोड़ दिया तब उस खंभे में से नरसिंह अवतार निकले और नरसिंह भगवान और हिरण्यकश्यप का युद्ध हुआ तब नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप को तब मारा जब ना दिन था ना रात थी संध्या जी ना ऊपर मारा ना नीचे अपनी जांघों पर उठा के मारा और ना अस्त्र से ना शस्त्र से अपने नाखून से मारा इस प्रकार प्रभु नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध किया।।

भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्या अवतार।
भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कच्छप अवतार।
भगवान विष्णु का तीसरा अवतार वराह और चौथा नरसिंह अवतार।
भगवान विष्णु का पांचवा अवतार वामन अवतार
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