राम और वैष्णों देवी मिलन। Ram or vaishno devi milan:-
यह उस समय की बात है जब भगवान विष्णु ने वैष्णो देवी को वचन दिया था कि मैं तुमसे मिलने आऊंगा तब भगवान विष्णु के कहने पर वैष्णो देवी ने पृथ्वी पर राजा रत्नाकर की पुत्री त्रिकुटा के रूप में जन्म लिया।
जब भगवान राम सीता जी को वन वन ढूंढ रहे थे तब महर्षि नारद जी त्रिकूटा (वैष्णो देवी) के पास गए वहां पर वह भगवान विष्णु की आराधना कर रही थी तब नारद जी ने कहा कि आपके आराध्य भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार ले लिया है, वह अपने पिता के वचनों का पालन करते हुए बनवासी हो गए हैं और किसी उद्देश्य से उत्तर दिशा में आए है। नारद जी की यह बात सुनकर त्रिकूटा ने भी सन्यासी रूप ले लिया और बन में जाकर तपस्या करने लगी इस बात का पता जब भगवान को राम चला
तो भगवान राम और हनुमान जी त्रिकूटा से मिलने गए वहा पर वह भगवान राम की तपस्या कर रही थी तब भगवान राम ने कहा कि आंखें खोलो त्रिकूटा तो त्रिकुटा ने आंखें खोली और भगवान राम को पहचान लिया त्रिकूटा ने भगवान राम को बैठा कर उनके चरणों को जल से भरे पात्र में धोया और भगवान राम को निहारने लगी और कहा, प्रभु मैंने आपको पति मान लिया है और मैं आपकी सेवा करना चाहती हूं। तब भगवान राम ने कहा कि हे त्रिकूटा मैं इस जन्म में तुमसे विवाह नहीं कर सकता क्योंकि मेरा विवाह हो चुका है और मैं इस जन्म में पत्नी व्रत हूं। हे देवी मैं आपसे इस जन्म में विवाह नहीं कर सकता तब त्रिकुटा बोली कि हे प्रभु मैं तो आपको पति पति रूप में पाना चाहती हूं भगवान राम बोले देवी इस समय में किसी कार्य को पूर्ण करने लंका जा रहा हूं
जब में लंका से अयोध्या प्रस्थान करूँगा उस समय मे तुमसे मिलने आऊंगा अगर तुमने मुझे पहचान लिया तो में तुमसे विवाह करलूंगा, त्रिकुटा ने कहा ठीक है प्रभु, इतना कहकर भगवान राम वहा से चले गये।
जब भगवान राम लंका पहुंचे और रावण का वध करके पुष्पक विमान से अयोध्या लौट रहे थे तब अचानक पुष्पक विमान रुक गयाऐसा देख लक्ष्मण और माता सीता कहने लगे हे प्रभु पुष्पक विमान अचानक कैसे रुक गया भगवान राम ने कहा कि यह भक्ति की शक्ति है हमें हमारे भक्त से मिलना मिलने जाना होगा लक्ष्मण ने पूछा कि ऐसा कौनसा भक्त है पर भगवान राम ने कहा कि हम इस समय आपको नहीं बता सकते हैं इतना कहा और भगवान राम और हनुमान जी त्रिकुटा से मिलने गये।
श्री राम और हनुमान जी ने साधु का रूप धारण कर लिया और त्रिकूटा के पास पहुंचे और त्रिकूटा से कहा भिक्षामं देहि लेकिन त्रिकूटा श्री राम के ध्यान मैं मग्न थी तब वह तेज आवाज में बोले भिक्षाम देहि तब त्रिकुटा ने आंखें खोली
संत बोले की ऐसे कौन के ध्यान में मग्न थी कि एक संत की भी आवाज को नहीं सुन सकी तब त्रिकुटा ने कहा कि मैं भगवान श्री राम के ध्यान में मग्न थी श्री रामचंद्र जी ने कहा था कि वे मुझसे मिलने आएंगे
संत बोले अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम, त्रिकुटा बोली हां ऋषिवर, श्रीराम तो रावण का वध करके अयोध्या लौट चुके हैं त्रिकुटा ने कहा कि नहीं महात्मा वे मुझसे मिले बिना जा सकते उन्होंने मुझे वचन दिया है।
वह त्रिलोकीनाथ भगवान राम की माया को नहीं पहचान सकी तब भगवान राम और हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में आए खुदा ने भगवान को प्रणाम किया और कहा कि प्रभु आपने अपना बचन निभाया है भगवान राम ने कहा आपने हमे पहचाना नही अब हम अपने बचन से मुक्त हुए। हम तुमसे विवाह नहीं कर सकते, तब त्रिकुटा बोली की प्रभु आप अपने भक्तों के साथ ऐसा नहीं कर सकते मैंने तो आपको अपना पति मान लिया है ऐसा सुनकर श्री रामचंद्र जी बोले की हम तुमसे इस जन्म में विवाह नहीं कर सकते तुम्हें इंतजार करना होगा त्रिकुटा बोली की मैं आपका इंतजार करूंगी तब श्री रामचंद्र जी बोले की कलयुग में जब मेरा कल्कि अवतार होगा तब मैं तुमसे विवाह करूंगा
त्रिकूटा ने कहा कि ठीक है प्रभु मैं आपका इंतजार करूंगी लेकिन तब तक मैं कहां रहूं तब श्री रामचंद्र जी ने कहा की हिमालय पर्वत के समीप त्रिकूट पर्वत है वहा एक सुरंग है जिसमें मां काली लक्ष्मी और माता सरस्वती विराजमान है तुम भी वहीं पर निवास करो और धर्म का प्रचार-प्रसार करो तुम्हारा जन्म ही धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए हुआ है और महाबली हनुमान सुरंग के बाहर तुम्हारे पहरेदार होंगे मानव जाति के कल्याण के लिए ही तुम्हारा जन्म हुआ है भक्त तुम्हें वैष्णो देवी के नाम से जानेंगे
तब से माता वैष्णो देवी त्रिकूट पर्वत पर तीनों देवियों के साथ निवास करती है और माता वैष्णो देवी के पहरेदार महाबली हनुमान है,जो भी भक्त त्रिकूट पर्वत पर माता वैष्णो देवी के दर्शन करने जाता है माता उनकी सारी इच्छा मनोकामना पूर्ण करती है