काल भैरव जन्म कथा।
एक बार सुमेरु पर्वत पर ब्रह्मा जी बैठे थे, तब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और उन्होंने ब्रह्मा जी से पूछा की अविनाशी तत्व कौन है तब ब्रह्माजी ने अहंकार बस कहा कि अविनाशी तत्व में ही हूं मैने ही सृष्टि को रचा है मुझसे ही सृष्टि संपन्न हुई है मेरे ही द्वारा सृष्टि का सृजन हुआ है, मैं ही आदि परब्रह्म हूं, तब भगवान विष्णु ने कहा कि यह तुम क्या कह रहे हो तुम्हारा सृजन तो मैंने किया है, तुम अपने आप को परब्रह्म बता कर मेरा अनादर कर रहे हो, ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान के मध्य विवाद होने लगा तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ऋषियों के पास गए और उनसे पूछा हम दोनों में श्रेष्ठ कौन हैं तब ऋषियो ने कहा कि भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं वही आदि पर भ्रम है, भगवान शिव ही अविनाशी तत्व है। तब ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने कहा कि ऋषियों को नहीं पता इसलिए वे ऐसा बोल रहे हैं, चलो हम वेदों के पास चलते हैं तब भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु वेदों के पास गए और उनसे कहा कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन हैं बारी बारी उन्होंने चारों वेदों से पूछा चारों वेदों ने कहा कि भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं वे ही सृष्टि के सृजन करता है, वे ही अविनाशी तत्व हैं, जिनके अंदर समस्त भूत निहित है, जिनका ना आदि हैं ना अंत है वे शिव ही सर्वश्रेष्ठ है, शिव ही सर्वशक्तिमान है।
तब ब्रह्माजी और श्री हरि बोले हे वेद यह तुम्हारी अज्ञानता है, शिव कैसे सर्वश्रेष्ठ हो सकते हैं, जो पर्वत पर पार्वती के संग रहता है जो बिना वस्त्र और भस्म लगाकर रहता है। वह सर्वश्रेष्ठ कैसे हो सकते हैं जब दोनों का विवाद हो रहा था तव ही वहा एक ज्योति उत्पन्न हुई जिसमें से त्रिशूल धारी शिव प्रगट हुए शिव को देख ब्रह्माजी का पांचवा मुख बोला।
हे चंद्र शंख धारी मैं तुम्हें जानता हूं तुम मेरे ही सिर से उत्पन्न हुए हो मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा है, जब तुम्हारा जन्म हुआ था तब तुम बहुत रुदन कर रहे थे, तब मैंने तुम्हारा नाम रूद्र रखा है पुत्र तुम मेरे शरण में आ जाओ
ब्रह्मा की अहंकार भरी वाणी सुनकर भगवान शिव को बहुत क्रोध आया तब भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव उत्पन्न हुए ।
काल भैरव के समक्ष भी ब्रह्मा का पांचवा मुख शिव का अनादर कर रहा था, तब काल भैरव को सहन नहीं हुआ और क्रोध बस उन्होंने ब्रह्मा जी का पांचवा मुख अपने हाथ की छोटी उंगली से काट दिया जिसे ब्रह्मा जी भयभीत हो गए ब्राह्म और श्री हरि का अहंकार दूर हो गया। शिव जी ने काल भैरव को कहा कि तुम्हारे हाथों ब्रह्म हत्या हुई है, जाओ तुम पश्चाताप करो जब तुम्हारे हाथों में से ब्रह्मा जी का शीश छूट जाएगा तो तुम समझ जाना कि तुम ब्रहम हत्या के पाप से मुक्त हो गए हो
काल भैरव तीनों लोकों में पश्चाताप करते रहे लेकिन जब वह काशी जी पहुंचे तो उनके हाथों में से ब्रह्मा जी का पांचवा मुख छूट गया और बे पाप मुक्त हो गए जहां ब्रह्मा जी का शीश छूटा उसे कपाल मोचन तीर्थ स्थान कहते हैं तब से ही वे काशी जी में विराजमान है जब भी कोई काशी जी जाता है तब श्री काल भैरव जी का दर्शन जरूर करते हैं काल भैरव जी के दर्शन के बिना काशी जाने का महत्व नहीं मिलता।