भगवान विष्णु का वामन अवतार।(bhagvan Vishnu ka vaman avatar)
भगवान विष्णु के दशावतार में वामन अवतार पांचवा अवतार है जो राजा बलि के अहंकार को दूर करने एक ब्राह्मण के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया।
वामन अवतार:-
प्रहलाद के पोत्र असुर राज बली ने जब ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर पृथ्वी के सभी राजाओं को परास्त कर संपूर्ण पृथ्वी पर आधिपत्य स्थापित कर लिया उसके बाद असुर राजबली ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया इस युद्ध में राजा बलि ने इंद्रदेव और सभी देवताओं को परास्त कर स्वर्ग लोक को अपने अधीन कर लिया इस प्रकार वह पृथ्वीलोक और स्वर्ग लोक का स्वामी हो गया।असुर राज बली से परास्त होने के बाद भी सभी देवताओं ने असुर राज बली पर फिर से आक्रमण किया परंतु उन्हें फिर भी परास्त होना पड़ा।
तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने असुर राज बली को कहा कि तुम 100 यज्ञ करो जिससे तुम्हारा स्वर्ग लोग पर एकछत्र राज हो जाएगा तुम्हें स्वर्ग से कोई नहीं हटा सकेगा तुम स्वर्ग के एकछत्र राजा रहोगे तब असुर राज बलि ने 100 यज्ञ करने का संकल्प कर लिया जब इस बात का पता देवताओं को चला तो सभी देवता भगवान श्री हरि विष्णु के पास गए और उनसे कहा कि प्रभु अगर राजा बलि ने 100 यज्ञ पूर्ण कर लिए तो वह स्वर्ग का एकछत्र राजा हो जाएगा स्वर्ग उसके अधीन रहेगा और मानव जाति पर गहन संकट आ जाएगा सभी देवताए देवता है इधर-उधर भटकते रहेंगे हम अपने कर्तव्य का ठीक से पालन नहीं कर पाएंगे प्रकृति का संचालन ठीक से नहीं हो पाएगा हे प्रभु आप कुछ कीजिए आप ही समस्या दूर कर सकते हैं। तब भगवान विष्णु ने इंद्रदेव व सभी देवताओं से कहा कि ठीक है, मैं तुम्हारी समस्या दूर करूंगा। इस प्रकार भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया, एक छोटे ब्राह्मण के रूप में याचक बनकर राजा बली के पास गए जहां पर राजा बलि यज्ञ कर रहे थे। राजा बलि के 99 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे वे 100वे यज्ञ का संकल्प ही कर रहे थे, उस समय भगवान विष्णु वामन के रूप में याचक बनकर आए।
राजा बलि के सामने जब वामन याचक बनकर आए तब राजा बलि ने कहा कि ब्राह्मण देवता मांगो आपको क्या चाहिए... गाय, स्वंर्ण आभूषण, महल, घर बताइए आपको क्या चाहिए तब वामन ने कहा कि मुझे अपने पग से तीन पग भूमि चाहिए यह सुनकर राजा बलि ब्राह्मण पर हंसने लगा और बोला कि तुम्हें तुम्हारे पग से सिर्फ तीन पग भूमि चाहिए।
राजा बलि ने कहा कि है ब्राह्मण तुम मुझसे इतना मांगो कि तुम्हें दोबारा किसी और से मांगने की जरूरत ना पड़े तब वामन ने कहा कि व्यक्ति को उतना ही लोग लालच करना चाहिए जितने कि उसे जरूरत हो व्यक्ति कितना ही क्यों न ले ले उसकी कामना कभी पूर्ण नहीं होती और अधिक पाने की इच्छा रखता है इसलिए कभी भी व्यक्ति को जितनी आवश्यकता हो उतना ही लेना चाहिए।
इतना सुनकर राजा बलि ने कहा कि ठीक है ब्राह्मण देव मैं आपको आपके पग से तीन पग भूमि देने के लिए तैयार हूं तब भगवान बामन ने कहा राजन आप संकल्प करिए राजा बलि ने कहा ठीक है तब राजा बलि संकल्प कर रहे थे तभी उनके गुरु शुक्राचार्य आए और कहा कि तुम इन्हें तीन पग भूमि देने की बात कर रहे हो यह तीन पग में सारे ब्रह्मांड को नाप देंगे यह और कोई नहीं भगवान विष्णु है और तुमसे तुम्हारा सब कुछ छीन कर इंद्र को दे देंगे तुम संकल्प मत करो परंतु राजा बलि ने कहा कि नहीं गुरुदेव मैंने इन्हें तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया है और संकल्प का जल भी हाथ में ले लिया है अगर में इन्हें इनकी इच्छा अनुसार भूमि नहीं दूंगा तो मैं अपने पूर्वजों का नाम कलंकित कर दूंगा, जिससे मेरे दादा श्री प्रहलाद और पिता श्री महात्मा विमोचन की कीर्ति नष्ट हो जाएगी और हमारे कुल पर कलंक लग जाएगा।
हे गुरुदेव अगर यह भगवान विष्णु हुए तो आप सोचिए कि जो तीनों लोकों के स्वामी हैं जिनके दर्शन करने के लिए योगी संत ऋषि और ब्रह्मांड का हर जीव जिनकी तपस्या आराधना करता है वह स्वयं मुझसे याचक बनकर कुछ मांगने आए हैं मैं भला उन्हें कैसे मना कर सकता हु,यह सारा ब्रह्मांड ही उनका है।
अतः हे गुरुदेव आप मुझे क्षमा कीजिए मैं इन्हें तीन पग भूमि देने के लिए वचन दे चुका हूं, तब गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को श्राप दिया कि तुम अपने गुरु की बात को नहीं मान रहे हो मैं तुझे श्राप देता हूं कि तुमसे तुम्हारा राजपाट और लक्ष्मी विमुख हो जाएगी। राजा बलि ने उनके गुरु के श्राप को स्वीकार किया तब उनके गुरु वहां से चले गए, राजा बलि ने संकल्प लिया कि मैं प्रहलाद का पोत्र और महात्मन विरोचन का पुत्र बलि यह संकल्प लेता हूं कि मैं वामन ब्राह्मण को तीन पग भूमि दान में देता हूं।
भगवान वामन ने अपना शरीर को इतना विशालकाय कर लिया कि जिससे पृथ्वी से देखना संभव नहीं है,फिर भगवान वामन ने पहले पग में समस्त भूमंडल को नाव दिया और दूसरे पग में स्वर्ग लोक को नाप दिया तब भगवान वामन ने कहा कि हे राजा बलि मैंने तो दो पग में पूरी पृथ्वी और स्वर्ग लोक नाप दिया है अब तीसरा पग देने के लिए तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है तुम्हारा संकल्प मिथ्या हुआ तुमने अपना संकल्प पूर्ण नहीं किया।
राजा बलि बोले नहीं भगवन मेरा संकल्प, वचन मिथ्या अभी नहीं हुआ है मैं उसे सत्य साबित करूंगा आप तीसरा पग मेरे शीश पर रखिए तब भगवान ने तीसरा पग राजा बली के सिर पर रखा, इस प्रकार राजा बलि ने अपना संकल्प पूर्ण किया।
भगवान श्री हरि राजा बलि की निष्ठा व प्रतिबद्धता देखकर बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि मैं तुम्हें अपनी अनन्य भक्ति प्रदान करता हूं तुम्हारा नाम युगो युगो तक लिया जाएगा, राजा बलि ने कहा कि हे प्रभु आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मुझे आपके चतुर्भुज रूप के दर्शन दीजिए।
तब भगवान श्री हरि विष्णु ने उन्हें चतुर्भुज रूप के दर्शन दिए। और कहा कि हे राजन अब तुम पृथ्वी लोक और स्वर्ग लोक पर निवास नहीं कर सकते क्योंकि यह तुमने दान कर दिए इस कारण तुम अपने पूर्वज और दादा प्रहलाद के साथ सुतल लोक में निवास करो वही तुम्हारा राज्य क्षेत्र होगा राजा बलि ने कहा ठीक है भगवान और भगवान श्री हरि इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गए।
यह है भगवान श्री हरि विष्णु के वामन अवतार लेने की कथा जब-जब प्रति पर अत्याचार और अनाचार बढ़ता है तब तक भगवान श्री हरि पृथ्वी पर अवतार लेते हैं और अपने भक्तों का दुख दूर करते हैं भगवान श्री हरि इस सृष्टि के पालनकर्ता है।
जिस प्रकार हमारे माता-पिता हमारे पालनकर्ता हैं, हमारे कष्टों को दूर करते हैं हमें क्या चाहिए क्या नहीं चाहिए इसका ध्यान रखते हैं, उसी प्रकार भगवान श्री हरि इस सृष्टि के पालनकर्ता है वह भी अपने भक्तों के दुख वह कष्ट को दूर करते हैं।