हरतालिका तीज व्रत कथा। तीजा व्रत कथा। शिव पार्वती कथा।

हरतालिका तीज व्रत कथा, तीजा व्रत कथा।

शिव-पार्वती कथा

हरतालिका तीज व्रत कथा:-

एक बार भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे थे तभी माता पार्वती के मन में प्रश्न आया और उन्होंने भगवान शिव से प्रश्न किया की हे प्रभु मैंने ऐसे कौन से अच्छे कर्म किए, क्या पुण्य किया जिस कारण आप मुझे प्राप्त हुए?


तब भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती आप बाल्यावस्था से ही मेरी आराधना करती रही हैं, और आपने मन ही मन मुझे पति के रूप में स्वीकार लिया था। आप मंदिर और वनो में जाकर मेरी तपस्या करती रही हैं। एक बार महर्षि नारद आपके राज महल में आए और आपके पिता हिमालय राज और आपकी माता मैंना देवी को कहां कि मैं भगवान विष्णु का विवाह प्रस्ताव आपकी पुत्री के लिए लाया हूं, यह सुनकर आपके पिता हिमालय राज और आपकी माता मैना देवी बहुत प्रसन्न हुई। है उन्होंने इस विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया यह बात जब आपको पता चली तो आप बहुत दुखी हुई और आपने अपनी देह त्यागने का निर्णय लिया तब आपकी सखी ने आपको समझाया कि देह त्यागने से कुछ प्राप्त नहीं होगा। इससे अच्छा कि आप भगवान शिव की तपस्या करो।


मैं एक ऐसा स्थान जानती हूं, नदी किनारे एक गुफा है जहां तुम भगवान शिव की तपस्या कर सकती हो तब आपकी सखी ने आपका हरण कर उस स्थान पर लेकर गई जहां आपने घोर तपस्या की आपने बिना अन्न जल फल के तपस्या की सिर्फ सूखे पत्तों का सेवन किया। आपने ग्रीष्म ऋतु में बाहर चट्टानों पर आसन लगाकर तपस्या की, वर्षा ऋतु में बाहर पानी में तप किया, हिम ऋतु में बाहर पानी में खड़े होकर मेरा ध्यान किया,इस प्रकार छह ऋतु मैं भी आप को मेरे दर्शन प्राप्त नहीं हुए तो तुमने ऊर्ध्वमुख होकर सूखे पत्तेे का भी त्याग कर केवल वायु का सेवन किया और वहीं नदी की बालू की शिवलिंग बनाकर पूजन की उसी दिन भाद्र मास की तृतीय शुक्ल पक्ष हस्त नक्षत्र युक्त थी। 


हे'पार्वती आपकी इस प्रकार की पूजन से मेरा सिंहासन हिल उठा और मैंने तुम्हें दर्शन दिए और कहा कि- देवी मैं तुम्हारे व्रत और पूजन से अति प्रसन्न हूं आप अपनी कामना का वर्णन करो, तो आपने कहा कि हे प्रभु आप अंतर्यामी है आपसे मेरे मन की बात छिपी नहीं है। हे प्रभु मैं आपको पति रूप में पाना चाहती हूं। तब मैं तुम्हें एवमस्तु इक्षित वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गया । तब आप बालू की शिवलिंग और पूजन सामग्री को नदी में प्रवाहित करने लगी तभी आपके पिता हिमालय राज ने आपको देखा और आपके पास आए यह देख वह बहुत दुखी हुए और आपसे कहा की पुत्री तुम इतने दिनों से कहां थी, तब आपने कहा कि मैं इसी स्थान पर भगवान शिव की आराधना कर रही थी, भगवान शिव को पाने के लिए तब हिमालय राज को बहुत दुख हुआ कि मैंने तुम्हारी इच्छा जाने बिना तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु से करने का प्रस्ताव स्वीकार किया, पुत्री मैं तुम्हारा विवाह तुम जहां कहोगी वहां करूंगा और तुम्हें साथ लेकर गए। फिर हिमालय राज और मैंना देवी ने आपका विवाह शुभ मुहूर्त देखकर मुझसे किया। 

इस व्रत को तीजा व्रत या हरतालिका व्रत भी कहते हैं हरतालिका व्रत इसलिए भी कहा जाता है की तुम्हारी सखी ने तुम्हारा हरण किया था।
यह व्रत जैसे तारागडो मैं चंद्रमा, नव ग्रहों में सूर्य, वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में सोम, इंद्रियों में मन, ऐसा यह व्रत श्रेष्ठ है
इस व्रत को करने से कुंवारी लड़की को मनचाहा वर मिलता है, विवाहित स्त्री के पति की लंबी आयु रहती है, विवाहित स्त्री का जीवन, परिवार सुखमय रहता है, उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है।

इस व्रत को कब और कैसे रहे?

इस व्रत को भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रहते हैं इस व्रत को निराहार बिना फल-आहार  के निर्जल रहना चाहिए।
भगवान शिव पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करके केले, पुष्प आदि के खंभे स्थापित करके रेशमी वस्त्र के चंदोबा तानकर बंदनवार लगा कर शिव की बालू की प्रतिमा स्थापित करके पूजन वैदिक मंत्र स्तुति गान, वाध, भेरी शंख , मृदंग, झांझर आदि से रात्रि जागरण करना चाहिए और भगवान शिव का पूजन करने के बाद फल, फूल, पकवान, लड्डू मेवा, तरह-तरह के भोग की सामग्री समर्पण कर फिर ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र पात्र आदि का दान श्रद्धा युक्त देना चाहिए।
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