हनुमान जी ने सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरुड़ जी का घमंड किस प्रकार तोड़ा

हनुमान ने सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरुड़ जी का घमंड किस प्रकार तोड़ा।

एक बार भगवान श्री कृष्ण ने सत्यभामा के कहने पर स्वर्ग से पारिजात के वृक्ष को ले आए तब सत्यभामा को इस बात का अहंकार हो गया कि मैं बहुत सुंदर हूं, इसी कारण श्री कृष्ण जी ने मुझे स्वर्ग से पारिजात का वृक्ष लाकर दिया है और में उनकी अति प्रिय हूं।
एक बार सुदर्शन चक्र को भी इस बात का अहंकार हो गया कि मैंने इंद्र के वज्र को ध्वस्त कर दिया और भगवान के पास जब कोई अस्त्र नहीं बचता है तब भगवान मेरा प्रयोग करते हैं।

इसी प्रकार एक बार गरुड़ देव को भी इस बात का अहंकार हो गया कि भगवान श्री हरि कहीं भी जाते हैं तो मुझे साथ में लेकर जाते हैं क्योंकि मेरी अति तीव्र गति व बल का कोई मुकाबला नहीं कर सकता है।

तब भगवान श्री कृष्ण ने सोचा कि क्यों ना इन तीनों का अहंकार दूर किया जाए फिर श्री कृष्ण ने हनुमानजी का स्मरण किया स्मरण करते ही हनुमान जी सारी बातें समझ गए और वह श्री कृष्ण जी के दरबार में जाने की वजह द्वारिका के एक सुंदर बगीचे में जाकर फल तोड़कर फेंकने लगे और सारे वृक्ष को उखाड़ कर फेंक दिया जब श्री कृष्ण जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने गरुड़ जी को बुलाया और कहा कि जाओ बगीचे में यह कौन उत्पात मचा रहा रहा है उसे दरबार में लेकर आओ, श्री कृष्ण जी की यह बात सुनकर गरुड़ जी उस बगीचे में पहुंचे और देखा कि एक वानर ने बहुत सारे वृक्ष को उखाड़ कर फेंक दिया और बहुत सारे फल को भी तोड़ तोड़ कर फेक दिए गरुड़ जी उन्हें पकड़ने के लिए गए तब हनुमानजी ने अपनी पूंछ से उन्हें जकड़ लिया जिससे गरुड़ जी को पीड़ा होने लगी और उन्हें दूर समुद्र में फेक दिया फिर वह बड़ी मुश्किल से संभले और श्री कृष्ण जी के दरबार में पहुंचे और कहा कि वह कोई साधारण वानर नहीं है इतना सुनते ही भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि वह जरूर श्री रामचंद्र जी के परम भक्त हनुमान जी है जाओ और उन्हें आदर पूर्वक यहां लेकर आओ और कहना की श्री राम जी आपको याद कर रहे हैं इतना कहते ही गरुड़ जी हनुमान जी को लेने गए परंतु हनुमान जी वहां से चले गए थे। वह उन्हें ढूंढते- ढूंढते मलय पर्वत पर जा पहुंचे जहां पर हनुमान जी श्री रामचंद्र जी का ध्यान कर रहे थे।
उन्होंने हनुमान जी से कहा कि मुझे अपनी गलती का आभास हो गया है मुझसे भूल हो गई है कृपया कर आप मुझे क्षमा करें और श्री रामचंद्र जी ने आपको द्वारिका मैं याद किया है अतः आप मेरे साथ चलिए और मेरी पीठ पर बैठ जाइए मैं कुछ ही समय में वहां पर आपको ले चलूंगा हनुमान जी ने कहा की आप चलिए मैं आपके पीछे-पीछे आता हूं गरुड़ जी यह कहकर चले गए। 
वहां द्वारिका में श्री कृष्ण जी ने सत्यभामा से कहा कि आप तैयार हो जाओ और श्री कृष्ण, श्री रामचंद्र जी के रूप में आ गए और सिहासन पर सत्यभामा के साथ बैठ गए और सुदर्शन चक्र से कहा कि जाओ तुम द्वार पर खड़े हो जाओ और किसी को भी अंदर मत आने देना ऐसा सुनते ही वह द्वार पर जाकर खड़े हो गए और पहरा देने लगे कुछ क्षणों के पश्चात ही हनुमान जी वहां पर आए तो उन्होंने हनुमान जी को रोका लेकिन हनुमान जी नहीं रुके उन्होंने सुदर्शन चक्र को अपने मुंह में रख लिया और अंदर आ गए और श्री रामचंद्र जी को प्रणाम किया 
रामचंद्र जी ने कहा कि आपको तो गरुड़ जी लेने गए थे बे कहां है आप तो अकेले आए हैं तब हनुमानजी ने कहा की वह तो मुझसे पहले निकले थे, अभी तक नहीं आए फिर वहां पर गरुड़ जी गहरी सांस लेते और थकी हुई अवस्था में वहां पर आए, और कहा कि आप तो मेरे पीछे पीछे आ रहे थे आप मुझसे पहले कैसे आ गए ।तभी श्री रामचंद्र जी ने हनुमान जी से पूछा कि आपको द्वार पर किसी ने रोका नहीं तब हनुमानजी ने मुंह मैं से सुदर्शन चक्र को बाहर निकाला और कहा कि हे प्रभु बाहर तो रोका था परंतु में आपको प्रतीक्षा कैसे करवाता इसलिए मैंने सुदर्शन चक्र को मुंह में रख लिया यह सब सुन भगवान मुस्कुराते है।
हनुमान जी ने कहा कि हे प्रभु माता सीता दिखाई नहीं दे रही है और आपने यह बगल में किसको बैठाया है उधर से रुकमणी जी आई तो हनुमान जी ने देखा और उन्हें माता सीता कहकर प्रणाम किया यह देख कर सत्यभामा का घमंड टूट गया।

 इसी प्रकार सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरुड़ देव तीनों का अहंकार टूट गया उन्हें अपनी भूल का आभास हो गया।

जय श्री कृष्णा।

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