भगवान विष्णु के दशावतार दूसरा कच्छप अवतार या कूर्म अवतार।
कच्छप अवतार kachap avtar। |
कच्छप अवतार:-
कच्छप अवतार भगवान विष्णु का दूसरा अवतार है।
देवासुर संग्राम के पश्चात देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई और सभी देवता श्री हीन हो गए तब वह भगवान श्री हरि विष्णु के पास गए और कहा कि हे जगत पालन श्री हरि विष्णु, दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या है जिससे वह युद्ध में मारे गए दैत्य को अपनी संजीवनी विद्या से जीवित कर देते हैं। जिससे दैत्य की संख्या उतनी ही रहती है परंतु देवता युद्ध में मारे जाते हैं तो हमारी संख्या कम होती जा रही है अतः हे प्रभु आप कोई उपाय कीजिए नहीं तो स्वर्ग लोक पर दैत्य दानव का अधिपत् हो जाएगा और पृथ्वी लोक पर भी मानव जाति खतरे में आ जाएगी।
समुद्र मंथन या सागर मंथन:-
भगवान विष्णु ने सभी देवताओं को समुद्र मंथन करने को कहा समुद्र के गर्भ में अत्यंत दुर्लभ व दिव्य पदार्थ छुपे हैं और अमृत भी समुद्र के गर्भ में है अगर आप सभी अमृत धारण करते हैं तो आप सभी देवताओं को कभी मृत्यु नहीं आएगी इंद्रदेव व देवताओं ने कहा कि प्रभु हम मंथन किस प्रकार करें तब भगवान श्री हरि ने कहा कि आप मंदराचल पर्वत की मथानी बनाकर और बासुकी नाग की नैति बनाकर सागर मंथन करना होगा, यह कार्य इतना सहज और सरल नहीं होगा इसमें आपको असुरों की सहायता लेनी होगी क्योंकि युद्ध के पश्चात आप देवता गण की संख्या कम हो गई है अतः आपको दो दिलों में कार्य करना होगा, एक दल से असुर वासुकी नाग को खीचेंगे, दूसरे दल से आप देवता गण वासुकी नाग को खींचेंगे।
फिर इंद्रदेव सहित सभी देवता असुर राज कालकेतु के पास गए इधर भगवान श्री हरि ने गरुड़ देव और सुदर्शन चक्र को कहा की सुदर्शन आप मंदर पर्वत को काट देना और गरुड़ जी आप वासुकी नाक की सहायता से मंदर पर्वत को पुष्पक विमान से बांध देना और सागर तट पर ले जाना उधर देवराज इंद्र और देवता असुर राज कालकेतु को समझाते हैं कि समुद्र से जो भी दिव्य पदार्थ निकलेगा हम आपस में बराबर बांट लेंगे असुर राज कालकेतु मान जाते हैं और देवताओं के साथ समुद्र तट पर पहुंच जाते हैं जैसे ही गरुड़ देव मंदर पर्वत और वासुकी नाग को समुद्र में छोड़ते हैं तो मंदर पर्वत को कोई आधार ना मिलने की वजह से वह डूबने लगता है तब इंद्रदेव और सभी देवता भगवान विष्णु की आराधना करते हैं तब वहां पर भगवान विष्णु कच्छप अवतार कछुआ का अवतार धारण करते हैं और समुद्र में जाकर मंदर पर्वत को अपनी पीठ पर धारण करते हैं फिर देवता वासुकी नाग की पूंछ की तरफ से खींचते हैं और असुर वासुकी नाग के मुंह की तरफ से खींचते हैं। वासुकी नाग और मंदर पर्वत की रगड़ से समुद्र मंथन होने लगता है।
जिसमें सर्वप्रथम समुद्र के गर्व से विश निकलता है,जिसे महादेव ग्रहण करते हैं फिर माता लक्ष्मी, भगवान श्री हरि को, इस प्रकार एक-एक करके कई दिव्य पदार्थ व वस्तु निकलती है, सारे आपस में बांट लेते हैं अंत में समुद्र के गर्व से अमृत निकलता है जिसे असुर, धनवंतरी से छीन कर भाग जाते हैं तब भगवान विष्णु मोहिनी के रूप में आते हैं और उनसे अमृत लेकर सभी देवताओं में बांट देते हैं।
जिसमें सर्वप्रथम समुद्र के गर्व से विश निकलता है,जिसे महादेव ग्रहण करते हैं फिर माता लक्ष्मी, भगवान श्री हरि को, इस प्रकार एक-एक करके कई दिव्य पदार्थ व वस्तु निकलती है, सारे आपस में बांट लेते हैं अंत में समुद्र के गर्व से अमृत निकलता है जिसे असुर, धनवंतरी से छीन कर भाग जाते हैं तब भगवान विष्णु मोहिनी के रूप में आते हैं और उनसे अमृत लेकर सभी देवताओं में बांट देते हैं।
इस प्रकार भगवान श्री हरि विष्णु के कच्छप अवतार के कारण ही समुद्र मंथन संभव हुआ और देवताओं को अमृत प्राप्त हुआ।