सती ने भगवान राम की परीक्षा ली।राम और सती। सती ने भगवान राम की कैसे ली परीक्षा।


सती ने भगवान राम की कैसे ली परीक्षा।

भगवान शिव और माता सती कुंभज ऋषि के पास भगवान राम की कथा सुनने गए।

जहां कुंभज ऋषि ध्यान लगाकर भगवान राम की कथा भगवान शिव और माता सती को सुनाते हैं कि भगवान राम किस प्रकार सीता जी के वियोग से बन में सीता का पता पूछते हैं वृक्षों से पूछते हैं क्या आपने मेरी सीता को देखा है पशु-पक्षी से पूछते हैं।


यह सब सुन कर माता सती को संदेह होता है की जो तीनों लोक के स्वामी हैं जो हर जीव  मनुष्य, प्राणी में है वे पत्नी के वियोग में किस प्रकार प्रलाप कर रहे हैं पशु पक्षी से पूछ रहे हैं वृक्षों से पूछ रहे हैं यह कैसे तीनो लोको के स्वामी हो सकते हैं।
पूरे दिन की कथा में माता सती यही बात सोचती रही और संदेह करती रही जब कथा जब उस दिन की कथा पूर्ण हुई और भगवान शिव और माता सती ने कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान किया रास्ते में भगवान शिव श्री रामचंद्र जी को बारंबार प्रणाम कर रहे थे और भगवान राम की महिमा बता रहे थे तब माता सती अपने संदे की बात भगवान शिव जी को कहती है कि हे स्वामी जो राम पत्नी के वियोग में इस प्रकार प्रलाप कर रहे हैं वृक्षों से पूछ रहे हैं पत्तों से पशु पक्षी से पूछ रहे हैं एक साधारण मानव की तरह पत्नी के वियोग में प्रलाप कर रहे हैं क्या यही राम भगवान श्री हरि विष्णु है तब भगवान भोलेनाथ ने कहा कि हां सती यही भगवान श्री राम चंद्र जी है जिन की कथा हम कुंभज ऋषि से सुन कर आए हैं यही तीनों लोकों के स्वामी हैं यही मेरे आराध्य राम हैं जो सृष्टि के हर कण-कण में है। यही परब्रह्म है।
सती नहीं मानती है भगवान शिव बार बार समझाते हैं संदे मत करो सती यही तीनों लोकों के स्वामी भगवान राम है

सती नहीं मानी तब भगवान शिव ने मन मैं सोचा कि मेरे बार-बार समझाने पर भी सती नहीं मान रही है सती पर भी माया का प्रभाव हो गया है जो मेरे बार-बार समझाने पर भी नहीं मान रही अब  सती का संदेश भगवान राम ही दूर करेंगे।
भगवान शिव ने कहा कि ठीक है सती तुम्हारे मन में अगर इतना ही संदेह हो रहा है तो तुम लेलो परीक्षा लेकिन परीक्षा तुम उसी प्रकार लेना जिस प्रकार तुम्हारा संदेश  दूर हो जाए। तुम परीक्षा लेकर आओ तब तक मैं तुम्हारा इंतजार इस वट वृक्ष के नीचे करूंगा। सती ने कहा ठीक है स्वामी सती वहां से वहां से चली गई और रास्ते में सोच रही थी कि मैं किस प्रकार राम की परीक्षा में तब सती के मन में आया कि मैं सीता का रूप में राम के पास जाऊंगी अगर वह साधारण नर हुए तो मुझे देख कर मेरे पास आएंगे और गले लगा लेंगे और अगर वे भगवान हुए तो मुझे पहचान लेंगे तब सती माता ने सीता जी का रूप धारण किया और भगवान् राम के आगे आगे चलने लगी यह देख लक्ष्मण जी समझ गए  और मन में सोचा कि यह कैसी माया है परंतु वह भगवान राम की तरफ देखते हैं वह यह सोचते हैं कि जब भगवान स्वयं कुछ नहीं कह रहे हैं तो मैं भी चुप ही रहता हूं। आगे जब सती रुकी तो भगवान राम ने सती को माता कहकर उनके पैर छुए और भगवान राम कहने लगे की

भगवान राम कहने लगेगी माता आप इस वन में अकेली क्या कर रही है भगवान शिव जी कहां है यह यह सब सुनकर सती का संदेश दूर हो गया और वह अपने मन ही मन में ग्लानि महसूस कर रही है, और माता सती ने जब श्रीराम की तरफ देखा तो उनके साथ सीता लक्ष्मण हनुमान और सभी सेना है, ऐसे ही सती ने चारों तरफ देखा तब चारों तरफ से भगवान राम और सीता आ रहे हैं, यह देख सती समझ गई की यही भगवान परब्रह्म है और मैंने परीक्षा लेकर बहुत बड़ी भूल कर दी। और सती ने जब आंख बंद किया और थोड़ी देर बाद आंखें खुली तो वहां से श्री राम आगे निकल चुके थे, फिर सती वहां से वापस भगवान शिव के पास आई तब भगवान शिव ने सती से पूछा कि सच कहना कि वहां पर क्या हुआ और सती तुमने परीक्षा ले ली तब सती ने कहा कि नहीं प्रभु मैंने परीक्षा नहीं ली आपने कहा कि यह भगवान परब्रह्म है तो मैं आपकी बात को मानकर उनको प्रणाम करके आ गई तब भगवान शिव ने मन ही मन सोचा कि सती तो इतना संदेह कर रही थी और मेरे बार-बार समझाने पर भी नहीं समझी।

भगवान शिव जी ने ध्यान लगाकर देखा कि वहां पर क्या क्या हुआ भगवान शिव जी ने ध्यान लगाकर देखा कि सती  ने सीता जी का रूप लेकर भगवान राम की परीक्षा ली हे  यह देखकर भगवान शिव को बहुत दुख हुआ और इसके बाद वह सती से कुछ भी नहीं बोली और वहां से चल दिए सती भगवान शिव से बार-बार  पूछती रही कि भगवान क्या हुआ लेकिन भगवान कुछ नहीं बोले और कैलाश पर्वत पर अपने स्थान पर बैठ गए सती ने वहां पर भी भगवान से पूछा

 उन्होंने मन ही मन सोचा कि सती का यह शरीर मेरे लिए माता के समान हो गया है क्योंकि सती ने माता सीता का रूप धारण किया है अब मैं सती के शरीर को स्वीकार नहीं कर सकता भगवान शिव का ऐसा प्रणं सुनकर आकाशवाणी हुई कि भगवान शिव आप से बढ़कर भक्त नहीं देखा आप धन्य हो और सभी देवता भगवान शिव पर पुष्प चढ़ाने लगे भगवान शिव की स्तुति करने लगे यह सब देख कर सती कहने लगी कि स्वामी यह सब आप पर पुष्कर क्यों चढ़ा रहे हैं और यह आकाशवाणी कैसी थी यह सुनकर भी भगवान से कुछ नहीं बोले तब सती सब कुछ समझ गई कि भगवान शिव जी ने ध्यान लगाकर सब कुछ देख लिया है अंतर्यामी सब कुछ जान गए हैं और सती मन ही मन पछताने लगी सती को उदास देख भगवान शिव सती को भगवान राम की कथा सुनाने लगे इसके बाद भगवान शिव ने कई वर्षों तक ध्यान किया।

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