भगवान शिव और भस्मासुर। bhagvan shiv or bhasmasur.

भगवान शिव और भस्मासुर :-

जब भगवान शिव ने भस्मासुर को वरदान दिया तो कैसे भस्मासुर भगवान शिव को भस्म करने के लिए पीछे लगे?

भगवान शिव(Bhagvan shiv)।

धनु दानव के वंशज शकुनि की सभा में जब शकुनी अपने पुत्र भृग की प्रशंसा करते हैं और उधर से भृग अपने ही सैनिक को मारते हुए सभा में पहुंचता है यह देख कर शकुनि को बहुत क्रोध आता है वह उसे रोकने के लिए सैनिक भेजते हैं फिर भी वह नहीं रुकता तब राजा शकुनी अपने पुत्र भृग को बंदी बनाने के लिए सैनिक भेजते हैं परंतु वह किसी प्रकार उन सैनिक को मारकर पित्र विद्रोह कर के भाग जाता है जब वह रास्ते में भागता हुआ जाता है तब नारद जी उनसे पूछते हैं कि कहां भाग रहे हो इतनी शीघ्रता से कहां जा रहे हो तो वह महाराज जी को ही मारने जाता है परंतु नारद जी वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं तब वह नारद जी के इस चमत्कार को देखकर नारद जी से विनती करते हैं कि मुझे भी शक्ति प्रदान करो तब उन्होंने कहा कि तुम केदारनाथ की शीर्ष चोटी पर जाकर भगवान शिव की तपस्या करो ।

भृग :-  भृग केदारनाथ की शीर्ष चोटी पर जाकर भगवान                 भोलेनाथ की तपस्या करने लगता है।

नारद जी :-   नारद जी भगवान शिव जी को कहते हैं कि     
प्रभु  केदारनाथ कि चोटी पर भृग नाम का दानव आपकी तपस्या कर रहा है आप उसे वरदान मत दीजिए, क्योंकि वह एक पित्र विद्रोह है और बहुत अत्याचारी है अगर उसे वरदान प्राप्त हो गया तो वह और विनाश करेगा।

शिव जी :-  शिव जी कहते हैं कि हे देव ऋषि नारद जो तपस्या, तप करता है उसे फल अवश्य मिलता है, चाहे वह जैसा भी हो जो जिस प्रकार तपस्या करता है उसे वैसा ही फल मिलता है।
नारद जी :-  नारद जी कहते हैं, जैसी प्रभु आप की लीला।

भस्मासुर-तपस्या।


भृग :-  इधर भृग भगवान शिव जी की घोर तपस्या करता है, शीत ऋतु में भी भगवान शिव की तपस्या करता है  तेज ठंड में भी आग जलाकर भगवान शिव की तपस्या करता है, इतने पर भी भगवान शिव दर्शन नहीं देते तो वह अपना एक हाथ काट कर भगवान शिव को समर्पित कर देता है तब भगवान शिव भृग को दर्शन देते हैं और कहते हैं---

शिव जी :-   मांगो भृग तुम्हें क्या वरदान चाहिए, मैं तुम्हारी 
तपस्या से बहुत प्रसन्न हूं।

 भृग :-   भृग कहता है की भगवान शिव मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मैं जिस किसी के भी सिर पर अपना हाथ रखूं वह जलकर भस्म हो जाए।

शिव जी:-   भगवान शिव कहते हैं तथास्तु तुम  जिस किसी के भी सिर पर हाथ रखोगे  वह भस्म हो जाएगा। भृग लोग तुम्हें  भस्मासुर के नाम से भी जानेंगे परंतु भस्मासुर तुम अपनी शक्तियों का दुरुपयोग मत करना

भगवान शिव द्वारा भस्मासुर को वरदान।

भृग :-  भृग कहता है कि ठीक है भगवान शिव शंकर और बहुत प्रसन्न होता है। भस्मासुर अपने पिता से अपने अपमान का बदला लेने अपने पिता की राज सभा में जाता है जहां  उसके पिता शकुनी सिहासन पर बैठे थे। भस्मासुर  अपने पिता  को भस्म करके उनके सिहासन पर बैठ जाता है और राजा बन जाता है और जो उसका विरोध करता है वह उसको भस्म कर देता है। उसे जिस पर क्रोध आता है उसे भस्म कर देता है। भस्मासुर का अत्याचार दिनों दिन बढ़ता जा रहा था  वह  उसे  पृथ्वी पर  जो लोग दिखते है  वह उसे भस्म कर देता है  जब है घूमते घूमते कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास पहुंचे जहां भगवान शिव के साथ माता पार्वती बैठी है वह माता पार्वती को देखता है और कहता है कि यह सुंदरी कौन है।

शिवजी  :-  तब भगवान् शिव कहते हैं भस्मासुर अपनी मर्यादा मत भूलो।
भस्मासुर :-  भस्मासुर कहता है कि इस सुंदरी को तो मैं अपनी रानी बनाऊंगा।
शिवजी :-   तब भगवान शिव पार्वती जी को जाने की कहते हैं पार्वती जी वहां से अंतर्ध्यान हो जाती है तब भस्मासुर भगवान शिव पर क्रोधित होता है और भगवान शिव को भस्म करने के लिए उनके पीछे लग जाता है। भगवान सेब वहां से पृथ्वीलोक तरफ भागते हैं वह भगवान शिव के पीछे भागते हुए जाता है जब नारद जी द्वारा इस बात का भगवान श्री हरि को पता चलता है तब--––

भगवान विष्णु :- भगवान श्री हरि विष्णु भोलेनाथ की सहायता करने मोहिनी रूप में जाते हैं और अपनी और भस्मासुर को आकर्षित करते हैं और कहते हैं कि तुम उस नारी के पीछे पड़े हो क्या मैं उससे ज्यादा सुंदर नहीं हूं भस्मासुर कहता है कि नहीं तुम बहुत सुंदर हो तब मोहिनी बोलती है कि तुम मेरे साथ विवाह करना चाहते हो भस्मासुर बहुत प्रसन्न होता है और कहता कि हां मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूं ।
 मोहिनी बोलती है की मैं जैसा कहूं तुम वैसा करो विवाह से पूर्व हम विवाह की खुशी मनाते हैं नृत्य करके तब मोहिनी नित्य करते-करते अपने सिर पर हाथ रखती है और भस्मासुर भी नृत्य करते-करते अपने ही सिर पर हाथ रख लेता है जिससे वह उसी समय भस्म हो जाता है।

भस्मासुर-

माता पार्वती और नारद जी भगवान शिव से कहते हैं कि भगवान आप बहुत ही भोले हो देखो आप बिना सोचे अपने भक्तों को वरदान दे देते हैं।

सार :-  किसी को भी अपनी शक्ति व ताकत का अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से वह स्वयं का ही नाश करता है।


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