नर्मदा मा की कथा।
क्यों दिया मां नर्मदा को अपनी ही दासी ने धोखा।
नर्मदा मा की कथा।
एक बार भगवान शिव मैखल पर्वत पर ध्यान कर रहे थे तब उनके पसीने से एक कन्या उत्पन्न हुई। वह भी भगवान शिव को देखकर ध्यान करने लगी जब भगवान शिव ने आंखें खोली तो वह कन्या भी ध्यान कर रही थी यह देख भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और कहा पुत्री मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि संसार तुम्हें नर्मदा के नाम से जानेंगे। तुम्हारे दर्शन मात्र से ही लोगों का कल्याण होगा और तुम्हारा वाहन जल का सबसे शक्तिशाली जीव मगर रहे रहेगा।
मैखल पर्वत पर वह पुत्री उत्पन्न हुई तो वह मैंखल राज की पुत्री कहलाई जब मा नर्मदा अपनी वाल अवस्था छोड़ बड़ी हुई तो उनके पिता मैंखल राज को उसके विवाह की चिंता होने लगी तो उन्होंने उसके विवाह की सोंची। विवाह करने के लिए मैंखल ने एक शर्त रखी कि जो राजकुमार गुलबकावली के फूल लेकर आएगा मैं उसी से मेरी पुत्री नर्मदा का विवाह करूंगा उस समय गुलबकावली के फूल मिलना बहुत कठिन था। कई राजकुमार ने प्रयास किए परंतु किसी ने भी गुलबकावली के फूल नहीं ला पाए, कुछ समय बीतने के बाद एक राजकुमार सोनभद्र ने गुलबकावली के फूल लाए वह बहुत ही पराक्रमी राजकुमार थे।
तब मैंखल राज ने नर्मदा मैया का विवाह राजकुमार सोनभद्र से पक्का कर दिया कुछ समय पश्चात उनके साथ उनका विवाह होने वाला था। इसी कारण मां नर्मदा के मन में राजकुमार के बारे में जानने उनसे भेंट करने की इच्छा हुई।
क्योंकि वे अपने पिता मेखल राज से सोनभद्र की पराक्रम के बारे में काफी सुनती थी इसलिए उन्होंने उनसे भेंट करने की इच्छा हुई।
मा नर्मदा को अपनी दासी ने दिया धोका।
माता नर्मदा ने अपनी दासी जोहिला को कहा कि जोहिला राजकुमार सोनभद्र और मेरे विवाह मैं कुछ ही समय शेष हैं। मैंने उन्हें अभी तक नही देखा, मैं उनसे भेंट करना चाहती हूं ।जोहिला तुम राजकुमार सोनभद्र के पास मेरा संदेश लेकर जाओ, तब जोहिला ने कहा कि राजकुमारी ऐसे शुभ कार्य मैं जाने के लिए मेरे पास अच्छे वस्त्र और आभूषण नहीं है। अतः आप मुझे अपने वस्त्र और आभूषण दे दीजिए जिसे पहनकर में आपका संदेश लेकर जा सकूं मां नर्मदा ने उन्हें अपने वस्त्र और आभूषण दे दिए। जोहिला उसे पहनकर राजकुमार सोनभद्र के पास गई वहां राजकुमार सोनभद्र का वैभव और सौंदर्य देखकर वह उन पर मोहित हो गई और राजकुमार सोनभद्र ने भी उसे राजकीय वस्त्र और आभूषण पहनने देख उसे नर्मदा समझने की भारी भूल कर दी और उसके समक्ष प्रेम प्रस्ताव रखा जिससे जोहिला मना ना कर सकी।
फिर दोनों ने विवाह कर लिया कुछ समय बीत जाने के बाद मां नर्मदा जी ने सोचा मैंने जोहिला को संदेश देकर पहुंचाया था, जोहिला अभी तक नहीं आई तब मां नर्मदे ने वहां जाने का मन बनाया और स्थिति जानना चाहा जब मां नर्मदा वहां पहुंची तो उन दोनों को वहां प्रणय करते देखा तो मां नर्मदा सब कुछ समझ गई। मां नर्मदा को इतना क्रोध आया कि वह वहां से वापस पश्चिम दिशा में चल दी और वापस कभी नहीं आने का प्राण ले लिया और आजीवन विवाह नहीं करने का प्रण ले लिया वह वहां से जाने लगी तब राजकुमार सोनभद्र को अपनी भूल का आभास हुआ और वे नर्मदा जी को पीछे से पुकार रहे थे नर्मदे नर्मदे लौट आओ कहकर पुकारने लगे परंतु मां नर्मदा नहीं रुकी और उल्टी दिशा पश्चिम दिशा में चलने लगी।
नर्मदा माँ।
मा नर्मदा ने वापस ना आने का प्रण ले लिया और उसी समय सन्यासी हो गई और आजीवन कुंवारी रहने का फैसला ले लिया उन्होंने एक रास्ता चुन लिया। भारत की सारी नदियां पूर्व दिशा की ओर बहती हैं परंतु मां नर्मदा एक मात्र एसी नदी है जो पश्चिम दिशा में बहती है, रास्ते में उन्हें बड़े पहाड़ और घने जंगल मिले परंतु उन्होंने अपना रास्ता नहीं बदला और अपना रास्ता बनाया। भारत की सारी नदियां बंगाल की खाड़ी मे जा मिलती हैं परंतु मां नर्मदा बंगाल सागर को छोड़ अरब सागर में जा मिलती है आज भी मां नर्मदा का सौंदर्य और उफान देखने को मिलता है।
जो फल गंगा मैया के स्नान करने मैं मिलता है, वह फ़ल सिर्फ मां नर्मदा के दर्शन करने मात्र से ही मिल जाता है।
पुराणों में कहा जाता है कि एक बार मां नर्मदा भगवान शिव के पास गई और कहा कि हे भगवान शिव पृथ्वी लोक पर इतने पापी हैं कि उनके स्नान करने से में दूषित हो गई हूं, तब भगवान शिव ने कहा कि तुम मां नर्मदा के पावन जल में स्नान करो तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे और तुम पहले जैसी निर्मल हो जाओगी।
आज भी विशेष ग्रह के पर्व पर मां नर्मदा के तट पर गंगा मैया स्नान करने आती हैं।