Navratri vrat katha hindi me। नवरात्रि व्रत कथा।

नवरात्रि व्रत कथा। (navratri vrat katha):-

Navratri vrat katha- no devi ki Katha hindi me,  नवरात्रि व्रत कथा।
Navratri vrat katha

नवरात्रि में हम माता दुर्गा के नौ रूपों की उपासना करते हैं जिससे हमें मनोवांछित फल प्राप्त होता है। माता दुर्गा के इस व्रत को धारण करने से मनुष्य के सभी कष्ट परेशानियां दूर हो जाती है।

नवरात्रि नौ देवी के नाम- (Navratri no devi ke nam) :-

हम नवरात्रि में माता दुर्गा के इन नौ रूपों का की उपासना व पूजन करते हैं   -------- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिधात्री।।

शैलपुत्री माता की कथा (Shailputri mata ki katha) :-

Navratri vrat katha- no devi ki katha hindi me, नवरात्रि व्रत कथा, navratri pujan-vidhi or mantr
शैलपुत्री माता की कथा Shailputri mata ki katha)

माता दुर्गा के 9 दिन की उपासना मैं प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा उपासना की जाती है माता शैलपुत्री का जन्म हिमालय राज शैल के घर होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री रखा गया। माता शैलपुत्री का वाहन बेल है माता शैलपुत्री की उपासना करने से मनुष्य का जीवन मूलाधार चक्र जागृत होता है। माता शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बांय हाथ में कमल का पुष्प है। माता की उपासना करने से व्यक्ति रोग मुक्त हो जाता है और माता शैलपुत्री की उपासना करने से सभी की मनोकामना पूर्ण होती है।माता शैलपुत्री को प्रथम दुर्गा भी कहते हैं।

शैलपुत्री माता का मंत्र :-

या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्रीं रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

वंदेवांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शेलपुत्रीं यशस्विनीम्  ।।

माता ब्रह्मचारिणी की कथा (Brahmacharini mata ki katha) :-

Navratri vrat katha- no devi ki katha, नवरात्रि व्रत कथा।
ब्रह्मचारिणी माता की कथा(brahmacharini mata ki katha)


माता दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी हे, नवरात्रि में माता दुर्गा के इसी रूप की उपासना व पूजन की जाती है ब्रह्मचारिणी माता के इसी रूप की पूजन उपासना संत योगी करते हैं
 ब्रह्मचारिणी ब्रह्मा अर्थात तप और चारणी अर्थात आचरण होता है, उस प्रकार माता का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।

माता ब्रह्मचारिणी तपस्या अर्थात तप की देवी है, माता ने भगवान शिव को पाने के लिए कई वर्षों तक घोर तप किया उन्होंने वृक्षों से गिरे सूखे पत्तों का आहार बनाकर सेवन किया फिर भी भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होंने सूखे पत्ते को भी त्याग दिया इस प्रकार माता ने घोर तप किया इस प्रकार के घोर तप से भगवान शिव का सिहासन, कैलाश पर्वत हिलने लगा तब भगवान शिव ने माता को दर्शन दिए माता ने उन्हें पति रूप में मांगा तब भगवान शिव ने उन्हें उनका इच्छित वर दिया।
माता के दाएं हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में जल से भरा कमंडल रहता है। अतः माता ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से व्यक्ति की सारी मनोकामना पूर्ण होती है और माता का नवरात्रि में दूसरे दिन व्रत करते हैं।

ब्रह्मचारिणी माता का मंत्र :-


चंद्रघंटा माता की कथा (Chandraghanta mata ki katha) :-

Navratri vrat katha- no devi ki Katha hindi me, नवरात्रि व्रत कथा।


नवरात्रि में हम तीसरे दिन माता दुर्गा के चंद्रघंटा माता के रूप की पूजन उपासना करते हैं, माता का यह रूप बहुत ही आकर्षक और सुंदर है। माता का नाम चंद्रघंटा इस कारण पड़ा माता के मस्तिष्क पर घंटे के समान अर्धचंद्र बना हुआ है और माता इस प्रकार तैयार रहती है की अगर उनके भक्तों पर किसी प्रकार का दुख या कष्ट हो तो वे माता युद्ध करने की स्थिति में रहती है। माता के घंटे की ध्वनि इतनी प्रचंड है कि शत्रु, असुर उस ध्वनि को सुनने से ही नष्ट हो जाते हैं उनकी उस प्रचंड घंटे की ध्वनि को शत्रु सहन नहीं कर पाते हैं। माता का रूप स्वर्ण के समान है और उनका वाहन सिंह है माता चंद्रघंटा का के दस हाथ हैं जो अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित है।

चंद्रघंटा माता का मंत्र :-

कुष्मांडा माता की कथा (Kushmanda mata ki katha) :-

Navratri vrat katha- no devi ki Katha hindi me, नवरात्रि व्रत कथा।


नवरात्रि में चौथे दिन माता दुर्गा के कुष्मांडा रूप की पूजन व उपासना की जाती है। माता कुष्मांडा के मुख पर कई सूर्य के सामान तेज है। कुष्मांडा माता का  निवास स्थान सूर्यमंडल के अंदर है। जब सृष्टि का सृजन नहीं हुआ था और चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था तब कुष्मांडा माता ने  सृष्टि के सृजन करने की सोची तव माता ने अपने अंड़ से ब्रह्मांड की रचना की इसलिए माता को कुष्मांडा कहते हैं,
माता अपने भक्तों पर अति शीघ्र प्रसन्न होती है कुष्मांडा माता की आठ भुजाएं हैं, इसलिए माता को अष्टभुजा कहते हैं माता के हाथों में कमंडल धनुष कमल पुष्प अमृत कलश चक्र में था जब माला आदि सुशोभित।

कुष्मांडा माता का मंत्र :-


स्कंदमाता की कथा (Skand mata ki katha) :-

नवरात्रि में माता दुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता का है पांचवे दिन स्कंदमाता की उपासना व पूजन की जाती है। स्कंदमाता माता का नाम स्कंदमाता इसलिए भी पड़ा क्योंकि वे कार्तिकेय की माता है और स्कंदमाता का यह शुरू चतुर्भुज रूप है। स्कंदमाता की गोद में कार्तिकेय हैं, स्कंदमाता का एक हाथ कार्तिकेय के हृदय पर रखा हुआ है और माता के दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है और माता के तीसरे हाथ में त्रिशूल है, स्कंदमाता के हाथ में त्रिशूल इसलिए विराजमान है क्योंकि उसमें तीन शूल है।

पहला शूल कामना जिससे माता व्यक्ति की कामनाओं का हरण करती है जो व्यक्ति अपनी मां से कहते हैं मां मुझे यह चाहिए उसकी कामना बढ़ती ही जाती है जिससे वह दुर्गति के रास्ते पर चल पड़ता है उसकी दुर्गति ना हो इसलिए स्कंदमाता उस व्यक्ति की कामनाओं का हरण करती है।

दूसरा शूज क्रोध है माता व्यक्ति के क्रोध को हर लेती है, व्यक्ति को क्रोध आने से व्यक्ति की बुद्धि काम नहीं करती और क्रोध में किया हुआ कार्य कभी लाभदायक नहीं होता स्कंदमाता क्रोध को हर लेती है जिससे मनुष्य सुखी जीवन जी सके।

तीसरा शूल का अर्थ है लोभ, स्कंदमाता व्यक्ति के लोभ को हर लेती है जो व्यक्ति अधिक लालच करता है और अधिक लालच करने से  व्यक्ति को अभिमान हो जाता है  इसलिए माता उसके लालच को हर लेती है
माता के चौथे हाथ में शंख है

स्कंद माता का मंत्र :-


कात्यायनी माता की कथा (Katyayani mata ki katha) :-

नवरात्रि के छठवें दिन माता दुर्गा के कात्यायनी रुप की पूजन व उपासना की जाती है माता कात्यायनी की पूजन व उपासना से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।

कात्यायन ऋषि माता दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त था जब कात्यायन ऋषि माता दुर्गा की तपस्या कर रहे थे तब माता ने प्रसन्न होकर कात्यायन ऋषि को दर्शन दिए और कहा कि मैं आपकी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूं मांगो आप को क्या वरदान चाहिए तब कात्यायन किसी ने कहा कि माता में अपनी भक्ति के बदले आपसे कुछ मांग कर अपनी भक्ति का मोल नहीं करना चाहता हूं माता आदिशक्ति ने कहा कि मेरे दर्शन देना कभी खाली नहीं जाता, तब कात्यायन ऋषि ने कहा कि ठीक है माता मेरे यहां कोई संतान नहीं है अगर आप मुझे कोई वर देना ही चाहती है तो आप मेरे यहां संतान के रूप में आने की कृपा करें माता ने कहा ठीक है मैं आपके यहां पुत्री रूप में आऊंगी और मेरा नाम आपके नाम से कात्यायनी पड़ेगा।

कात्यायनी माता का मंत्र :-

कालरात्रि माता की कथा (Kalratri mata ki katha) :-


नवरात्रि में माता दुर्गा के कालरात्रि देवी के स्वरूप की पूजन व उपासना की जाती है। माता कालरात्रि का पूरा शरीर काला होने के कारण माता को कालरात्रि कहते । माता कालरात्रि की उपासना व पूजन करना शुभ फलदायी है इसलिए माता का एक नाम शुभंकारी भी है।

कालरात्रि माता की चार भुजाएं हैं एक हाथ में लोहे की कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा है और इसके अलावा माता के दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। माता के तीन नेत्र हैं और इनके स्वास से अग्नि निकलती है कालरात्रि माता का वाहन गर्दभ अर्थात गधा है। कालरात्रि माता की उत्पत्ति असुर रक्तबीज का वध करने के लिए माता दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया है।

कालरात्रि माता का मंत्र :-


महागौरी माता की कथा (Mahagauri mata ki katha) :-

नवरात्रि में आठवें दिन मां दुर्गा के महा गौरी रूप की पूजन उपासना की जाती है। महागौरी माता की चार भुजाएं हैं दो हाथों में त्रिशूल और डमरू है वह अन्य दो हाथ बर मुद्रा और अभि मुद्रा में है। माता का रूप श्वेत और माता ने सभी वस्त्र श्वेत रंग के धारण किए हैं इसलिए माता को श्वेतांबर धारी भी कहते हैं।

मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कई वर्षों तक तपस्या की जिससे उनका शरीर बहुत कमजोर व क्षीण हो गया और उनका रंग काला हो गया पार्वती जी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया और भगवान शिव ने कहा कि पार्वती तुम गंगाजल से स्नान कर लो तब पार्वती जी ने गंगाजल से स्नान किया जिससे उनके शरीर पर तेजस्वी हो गया व गौर के समान हो गया हो गया और उनका रंग स्वर्ण जैसा चमकने लगा तब भगवान शिव ने उन्हें महागौरी का नाम दिया।

महागौरी की एक कथा और है जहां माता पार्वती वन में ध्यान कर रही थी वहां पर एक सिंह रहता था जब उसने माता पार्वती को देखा तो शिकार करने की सोची परंतु माता पार्वती ध्यान मैं लीन थी सिंह ने सोचा कि जैसे ही यह आंखें खोलेगी मैं इसका शिकार कर लूंगा, परंतु पार्वती जी ने कई वर्षों तक तपस्या की सिंह ने भी पार्वती के आंखें खोलने का कई वर्षों तक इंतजार किया परंतु भूख से सिंह का शरीर बहुत कमजोर हो गया जब माता पार्वती ने आंखें खोली और सिंह की तरफ देखा और कहां की तुमने भी एक प्रकार से तपस्या ही की है तब माता ने सिंह को वरदान दिया  और कहां की तुम मेरे वाहन रहोगे तब से माता के दो वाहन एक बेल और एक सिंह है।

महागौरी माता का मंत्र :-


सिद्धिदात्री माता की कथा (Siddhidatri mata ki katha) :-

नवरात्रि के नौवें दिन माता दुर्गा के सिद्धिदात्री माता की उपासना व पूजन की जाती है सिद्धिदात्री माता की उपासना करने से साधक को सिद्धियां प्राप्त होती है नौवें दिन सिद्धिदात्री माता की उपासना करने से भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है व सारे कष्ट दूर हो जाते हैं सिद्धिदात्री माता अष्ट सिद्धि की माता है इन्ही क कृपा से सिद्धियां प्राप्त होती है।
भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री माता से सिद्धियां प्राप्त की है  और भगवान शिव  इन्ही की कृपा से अर्धनारेश्वर हुए। माता की चार भुजाएं जिसमें दो हाथ में गदा, चक्र और अन्य दो हाथ में शंख और पुष्प है माता कमल के पुष्प पर विराजमान है।

सिद्धिदात्री माता का मंत्र :-


नवरात्रि व्रत कथा :-




Post a Comment (0)
Previous Post Next Post